martedì 18 settembre 2018

लेकिन अब निवेश से क्यों कतरा रहे?

चीन की सरकार ने सोलर एनर्जी सेक्टर की सब्सिडी इसलिए ख़त्म की क्योंकि उस पर क़र्ज़ बढ़ रहा था. युआन ल्यू कहती हैं कि सरकार के सब्सिडी घटाने से चीन के सोलर एनर्जी सेक्टर को तगड़ा झटका लगा है. पिछले साल चीन में 53 गीगावाट क्षमता के सोलर प्लांट लगाए गए थे. इस साल इससे तीस फ़ीसद कम यानी 35 गीगावाट क्षमता के सोलर प्लांट ही लगाए जाने की उम्मीद है.
युआन ल्यू कहती हैं कि लागत बढ़ने से निवेशक, विशाल सोलर फ़ार्म में निवेश के बजाय दूसरे विकल्पों का रुख़ कर रहे हैं. बड़े शहरों में छतों पर सोलर पैनल लगाकर बिजली बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है. इससे बिजली सीधे ग्राहक तक पहुंचेगी.
हालांकि जेफ्री बाल, युआन ल्यू और चू, तीनों का मानना है कि चीन में बड़े सोलर प्लांट लगाने का सिलसिला ख़त्म होने वाला नहीं है. जेफ्री बाल कहते हैं कि चीन सिर्फ़ अपने यहां ही बड़े सोलर प्लांट नहीं लगा रहा. चीन दूसरे देशों में भी सौर ऊर्जा में भारी निवेश कर रहा है.
आज की तारीख़ में भारत समेत कई देशों में विशाल सोलर प्लांट लगाए जा रहे हैं. ये जल्द ही बन कर तैयार होंगे.
ऐसा ही एक सोलर फ़ार्म मिस्र के बेनबान कॉम्प्लेक्स में बनाया जा रहा है. ये 37 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. इसकी क्षमता 1600 से 2000 मेगावाट बिजली बनाने की होगी. इसे बनाने वालों में एक चीन की कंपनी भी है.
वहीं पांडा सोलर प्लांट बनाने वाली पांडा ग्रीन एनर्जी, कई और बड़े सोलर प्लांट लगाने का इरादा रखती है. ये भी आसमान से देखने में काले-सफ़ेद पांडा जैसे दिखेंगे. इसके लिए ख़ास सोलर पैनल भी डिज़ाइन किए गए हैं. पांडा ग्रीन एनर्जी, कनाडा समेत कई और देशों में भी सोलर प्लांट लगाने पर काम कर रही है.
युआन ल्यू कहती हैं कि सोलर पैनल दिनों-दिन सस्ते हो रहे हैं. जल्द ही सौर ऊर्जा निवेशकों के लिए लॉलीपॉप जैसी हो जाएगी. वो मानती हैं कि अगले तीन से पांच साल में सोलर प्लांट को बिना सब्सिडी के आसानी से लगाया जा सकेगा.
लेकिन, बड़े सोलर प्लांट को लेकर सवाल कचरे का उठेगा. बड़े सोलर प्लांट में इस्तेमाल होने वाले पैनल आगे चल कर बड़े कचरे के ढेर में तब्दील होंगे क्योंकि इनकी उम्र अधिकतम तीस साल होती है. इसके बाद इन्हें तोड़ना पड़ता है. इन्हें रिसाइकिल करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इनमें सल्फ्यूरिक एसिड जैसे ख़तरनाक केमिकल होते हैं. यानी 2040 के बाद चीन के यही विशाल सोलर प्लांट बड़े और ख़तरनाक कचरे के ढेर में तब्दील होने वाले हैं. फिलहाल उनसे निपटने की कोई योजना नहीं दिखती.
हालांकि एटमी प्लांट के कचरे के मुक़ाबले सोलर पैनल का कचरा कम नुक़सानदेह है. लेकिन साफ़ बिजली हासिल करने के लिए हमें एक और चुनौती से दो-चार होना होगा.
जेफ्री बाल कहते हैं कि अभी सोलर प्लांट के कचरे की चुनौती की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं. अभी तो हर देश विशाल सोलर प्लांट लगाने में व्यस्त है.
बाल्ज़ाक हर शाम पेरिस की गलियों को छानते हुए उस कैफे तक पहुंचते थे जो आधी रात के बाद तक खुला रहता था. कॉफ़ी पीते हुए वे सुबह तक लिखते रहते थे.
कहा जाता है कि बाल्ज़ाक एक दिन में 50 कप कॉफ़ी पी जाते थे.
भूख लगने पर बाल्ज़ाक चम्मच भर कॉफ़ी के दानों को चबा लेते थे. उन्हें लगता था कि ऐसा करने से उनके दिमाग़ में विचार ऐसे कौंधते हैं जैसे जंग के खाली मैदान में सेना की बटालियन मार्च करते हुए चली आ रही हो.
बाल्ज़ाक ने करीब 100 उपन्यास, लघु उपन्यास और नाटक लिखे. हृदय गति रूक जाने से केवल 51 साल की उम्र में उनका निधन हुआ.
सदियों से लोग कॉफ़ी पी रहे हैं. लेकिन बाल्ज़ाक जिस वजह से कॉफ़ी पीते थे, वैसा अब नहीं है.
नई पीढ़ी नये प्रयोग कर रही है. वह नई और स्मार्ट दवाइयां ले रही है, जिनके बारे में वे मानते हैं कि वह उनकी दिमाग़ी ताक़त बढ़ाती है और उनको काम में मदद करती है.
हाल में अमरीका में कराये गए सर्वे में 30 फ़ीसदी लोगों ने माना कि उन्होंने ऐसी दवाइयां ली हैं. मुमकिन है कि भविष्य में सभी लोग इनका सेवन करने लगें, परिणाम चाहे जो भी हो.
सवाल है कि क्या नई दवाइयों के इस्तेमाल से दिमाग़ ज़्यादा काम करने लगेगा? नये आविष्कार होने लगेंगे या आर्थिक तरक्की की रफ़्तार को पंख लग जाएंगे? जब लोग ज़्यादा सक्षम हो जाएंगे तो क्या उनके सारे काम जल्दी ख़त्म होने लगेंगे और वीकेंड बड़ा हो जाएगा?न सवालों के जवाब तलाशने से पहले देखते हैं कि कौन-कौन सी दवाइयां उपलब्ध हैं.
पहला स्मार्ट ड्रग पाइरासेटम है, जिसे रोमानिया के वैज्ञानिक कॉर्नेल्यु ग्युर्जी ने साठ के दशक की शुरुआत में खोजा था.
ग्युर्जी उन दिनों एक ऐसे रसायन की खोज कर रहे थे जो लोगों को सोने में मदद करे. महीनों के प्रयोग के बाद उन्होंने 'कंपाउंड 6215' तैयार किया.
ग्युर्जी का दावा था कि यह सुरक्षित है और इसके बहुत ही कम साइड इफेक्ट हैं. लेकिन उसने काम नहीं किया. ग्यूर्जी की दवा से किसी को नींद नहीं आई, बल्कि इसका उल्टा असर हुआ.
पाइरासेटम का एक साइड इफेक्ट हुआ. जिन मरीजों ने कम से कम एक महीने तक यह दवा ली थी, उनकी याददाश्त बढ़ गई.
ग्युर्जी को अपनी खोज की अहमियत का तुरंत अहसास हो गया. उन्होंने एक नया शब्द बनाया- नूट्रोपिक. यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों को मिलाने से बना था, जिसका अर्थ है- दिमाग़ को मोड़ना.
पाइरासेटम छात्रों और पेशेवर युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय है. वे इसके सहारे अपना प्रदर्शन सुधारना चाहते हैं. हालांकि ग्यूर्जी की खोज के दशकों बाद भी इस बात के सबूत नहीं है कि यह दवा किसी स्वस्थ व्यक्ति की दिमाग़ी क्षमता को बढ़ाती है.
ब्रिटेन में डॉक्टर भी अपनी पर्चियों पर यह दवा लिखते हैं, लेकिन अमरीका में इसे बेचने की इजाज़त नहीं है.
टेक्सास के उद्यमी और पॉडकास्टर मंसल डेन्टॉन फेनाइल पाइरासेटम की गोली लेते हैं. इस दवा को सोवियत संघ ने अपने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बनाया था. यह दवा उन्हें अंतरिक्ष के जीवन के तनाव से निपटने में मदद करता था.
डेन्टॉन कहते हैं कि वे जब यह गोली लेते हैं तो उन्हें कई चीज़ें स्पष्ट तौर पर बोलने में आसानी होती है. उन दिनों वे ज़्यादा रिकॉर्डिंग कर पाते हैं.
स्मार्ट ड्रग्स का सेवन करने वाले इन दवाइयों को लेकर बहुत भावुक होते हैं, लेकिन दिमाग़ पर उनका असर या तो प्रमाणित नहीं है या फिर बहुत कम है.

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